धन्य हैं वो लोग जो निस्वार्थ समाज की सेवा में लगे रहते हैं। आज आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में जानकर आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे। 85 वर्षीय नारायण भाऊराव दाभाडकर ने अपने बेड इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वे एक नौजवान की जिंदगी बचाना चाहते थे।
मैंने अपनी ज़िंदगी जी ली, इस महिला के पति को मेरा बेड दे दिया जाए, यही इंसानियत है।🙏🙏🙏🙏🙏🙏 pic.twitter.com/qHyMu9NRn1
— Vipan Thakur (@vipansadyal) April 28, 2021
मामला महाराष्ट्र के नागपुर का है। नागपुर में
कोरोना से हालात बेहद खराब हैं। शहर और ग्रामीण इलाकों में या यूं कहें कि जिले
में प्रतिदिन हजारों की संख्या में कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं। अब बात करते हैं
नारायण भाऊराव दाभाडकर की, जो अब हमारे बीच नहीं हैं।
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“मैं 85 वर्ष का हो चुका हूँ, जीवन देख लिया है, लेकिन अगर उस स्त्री का पति मर गया तो बच्चे अनाथ हो जायेंगे, इसलिए मेरा कर्तव्य है कि मैं उस व्यक्ति के प्राण बचाऊं।'' ऐसा कह कर कोरोना पीडित @RSSorg के स्वयंसेवक श्री नारायण जी ने अपना बेड उस मरीज़ को दे दिया। pic.twitter.com/gxmmcGtBiE
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) April 27, 2021
85 वर्षीय नारायण भाऊराव दाभाडकर राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे। वे कोरोना संक्रमित थे और उनका इलाज चल रहा था।
बेटी और दामाद ने उन्हें नारायण जी इंदिरा गांधी शासकीय अस्पताल में भर्ती थे,
लेकिन उन्होंने अपना बेड इसलिए खाली कर दिया क्योंकि वे एक नौजवान की जिंदगी बचाना
चाहते थे। उन्होंने कहा, मैंने पूरी जिंदगी जी ली है। इस नौजवान के सामने तो अभी
पूरा जीवन बाकी है। इसके ऊपर परिवार की जिम्मेदारियां। ये कहते हुए उन्होंने अपना
बेड उस नौजवान को दे दिया। इसके ठीक तीन दिन बाद नारायण भाऊराव दाभाडकर का निधन हो
गया।
इस घटना को लोग सोशल मीडिया पर शेयर कर दिवंगत
आत्मा और त्याग को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री
शिवराज सिंह चौहान ने भी उनको श्रद्धांजलि अर्पित की।
कई लोगों ने बताया कि उस दिन महिला अपने पति के
बेड ढूंढ रही थी और जोर जोर से रो रही थी। रोने की आवाज सुनकर नारायण जी अपने बेड
से उठ गए और डॉक्टर्स को बुलाकर कहने लगे कि वे घर जा रहे हैं आप बेड इन्हें दे
दीजिए। मैं अपनी पूरी जिंदगी जी चुका हूं। इनके छोटे-छोटे बच्चे हैं, अगर घर के
मुखिया को कुछ हो गया तो बच्चों को क्या होगा। जब नारायण जी घर गए उस समय उनका
ऑक्सीजन लेवल 60 था।
ये इंसानियत का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि किसी की
जान बचाने के लिए नारायण जी ने अपने प्राण त्याग दिए। ऐसे व्यक्तित्व को सादर नमन।