एक तरफ दो कमरों का घर, आंगन में बंधी हुई दो-तीन गाय। मां के मैले कुचैले कपड़े, घुटने से उठा हुआ पिता का पैजामा और बड़ी दाढ़ी। दूसरी तरफ। आंगन में पड़ रही धूप में बिस्तर पर पड़ी एक अबोध बेटी। जो लोगों को आता-जाता देख खुश तो होती है पर कुछ कह नहीं पाती, कुछ कर नहीं पाती।
13 साल से ये बच्ची यूं ही बिस्तर पर पड़ी हुई है और 13 साल से मां-बाप यूं ही इसकी सेवा कर रहे हैं। एक दशक से ये परिवार अपने दुखों को समेटे यूं ही जीवनयापन कर रहा था, लेकिन 2020 में इस परिवार का सहारा बनी जयराम सरकार में शुरू हुई सहारा योजना।
ये परिवार हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना के धर्मपुर गांव में रहता है। 13 साल से बिस्तर पर पड़ी बच्ची का नाम श्रृष्टि है। पिता जगमोहन ने बताया कि 2020 में जयराम सरकार ने जब सहारा योजना शुरू की तो आशा वर्कर के जरिए उन्हें पता चला। आशा वर्कर के बताने पर बच्ची के सभी जरूरी कागजात पिता ने स्वास्थ्य विभाग में जमा करवाए। सहारा योजना के तहत बच्ची को शुरू में 2000 रुपये पेंशन मिलती थी, लेकिन अब बढ़कर 3000 रुपये हो गए हैं।
बात करते-करते पिता जगमोहन और मां की आंखों में आंसू आ गए। पिता ने कहा कि पहले नेता वोट मांगने आते थे और मदद का आश्वासन देकर चले जाते थे। पहले तो सुनवाई भी उन्हीं की होती थी जो ठीकठाक होते थे और जिनकी पहुंच होती थी, लेकिन अब गरीब, लाचार और बेसहारों की भी सुनवाई होती है।
रोते हुए पिता ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को धन्यवाद देते हुए कहा कि हिमाचल में ऐसी पहली सरकार आई है जो ऐसे गंभीर रूप से बीमार बच्चों, लाचार परिवारों की सुध ले रही है। भगवान उन्हें तदरुस्त रखे और तरक्की दे। आपको बता दें कि जगमोहन की चार बेटियां हैं और ये दिहाड़ी मजदूरी कर के परिवार का पालन पोषण करते हैं।