2017 में भारतीय जनता पार्टी ने हिमाचल में जीत का परचम लहराया, लेकिन सीएम पद के दावेदार प्रेम कुमार धूमल अपने ही चेले से चुनाव हार गए तो आलाकमान ने उस चेहरे की तलाश शुरू की जो सत्ता का मंझा हुआ खिलाड़ी हो, जो सरकार और संगठन में तालमेल बिठा सके, जो हिमाचल के विकास कार्यों को गति दे सके और जिसके नाम पर सब एकमत हों।
होली के दिन एक परिवार से उठीं 4 अर्थियां, दर्दभरी दास्तां सुनाते हुए फूट-फूट कर रोई दादी
आलाकमान की तलाश मंडी में खत्म हुई। वो चेहरा था
जयराम ठाकुर। जयराम ठाकुर 5वीं बार विधायक बने और संगठन के कई अहम पदों रहकर काम
कर चुके थे। जयराम के नाम पर सब एकमत थे, न कोई विरोध और न कोई शर्त थी। सियासत
में जयराम ठाकुर की कड़ी राजनीतिक साधना काम आई।
रोते हुए बोली शहीद की पत्नी, मेरे जीवन के सारे रंग उन्हीं के साथ चले गए
विधायक पद पर रहकर काम करना, मंत्री पद पर रहकर
करना और मुख्यमंत्री पद पर रहकर काम करने में काफी अंतर होता है। दिवंगत यशवंत
सिंह परमार, ठाकुर राम लाल, शांता कुमार, वीरभद्र सिंह या प्रेम कुमार धूमल। इनमें
से चाहे कोई भी हो पहली बार मुख्यमंत्री बनने पर काफी दिक्कतों का सामना करना
पड़ा, लेकिन इनकी तुलना में जयराम ठाकुर सिस्टम को मैनेज करने, विकास कार्यों को
गति देने और विपक्ष को साधने में लगभग सफल साबित हुए। उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है
उनका सदन का अनुभव।
सबसे कम उम्र की जिला परिषद अध्यक्ष मुसकान का सम्मान, जयराम ठाकुर और अनुराग ठाकुर ने की तारीफ
जयराम ठाकुर 24 साल से विधानसभा में बैठ रहे
हैं। उन्होंने कई मुख्यमंत्रियों को काम करते देखा। खुद मंत्री भी रहे। संगठन में
रहकर बड़ी जिम्मेदारी भी निभाई और किस विभाग में कैसे काम होता है इसके बारे में
भी जानते हैं।
जयराम सरकार के अभी तक के कार्यकाल में कोई भी
जनआक्रोश की घटना नहीं हुई। कांग्रेस ने कई बार सड़कों पर आकर आंदोलन भी किया,
लेकिन जनसमर्थन हासिल न कर पाने की वजह आंदोलन खत्म हो गए। अगले लेख में आपको
बताएंगे कैसे बेलगाम अफसरशाही की मुख्यमंत्री जयराम ने लगाम कसी, वो भी बिना तल्खी
के...