मेरी बहन नोएडा सेक्टर 66 में अपने घर में मरम्मत करवा रही है। मुझे भी उसकी सहायता के लिए वहां आना-जाना पड़ता है। पूर्वी दिल्ली में रहने के कारण मैं एनएच-24 से जाता हूं। जाते समय तो तकलीफ नहीं होती, लेकिन लौटते समय हमेशा परेशानी का सामना करना पड़ता है। कारण बहुत स्पष्ट है - महामार्ग की दूसरी तरफ फर्जी किसानों का धरना। लौटते समय कैब की बुकिंग तो कम राशी पर होती है, लेकिन घर पहुंचते-पहुंचते पैसा डेढ़ गुना हो जाता है। रोज झिकझिक होती है वो अलग। ये कहानी सिर्फ मेरी नहीं, एनएच-24 से आवाजाही करने वाले लाखों नागरिकों की है। इससे असली किसानों, उद्योपतियों, मजदूरों आदि को अब तक कितने हजार करोड़ की चपत लग चुकी है वो अलग। ये नजारा सिर्फ एनएच-24 का ही नहीं, दिल्ली को देश से जोड़ने वाले अन्य महामार्गों पर भी यही दृश्य है।
धरने पर बैठे फर्जी किसान सरकार के साथ अनेक दौर की बातचीत और उच्चतम न्यायालय की मध्यस्थता के बावजूद क्यों हटने को तैयार नहीं हैं, धरनों के पीछे नक्सलियों, खालिस्तानियों और देशद्रोही इस्लामिक संगठनों की क्या सांठगांठ है, ये देशविरोधी धरने शाहीन बाग-2 क्यों कहे जा रहे हैं, दिल्ली दंगों में नामित लोगों के पोस्टर वहां क्यों लगाए जा रहे हैं, दिल्ली दंगों के आरोपित फर्जी किसानों के साथ क्या सांठगांठ कर रहे हैं और उनकी तरफ से क्यों संवाददाता सम्मेलन कर रहे हैं, इन धरनों को लेकर पंजाब के अनेक गुरूद्वारों और मस्जिदों में कैसे भड़काऊ भाषण दिए जा रहे हैं, कैसे इनके लिए जबरदस्ती उगाही की जा रही है, कैस इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा आदि से आए खालीस्तानी तत्व यहां विषवमन कर रहे हैं, हम इन सब बातों पर चर्चा नहीं करेंगे।
हमारी चर्चा का विषय है दिल्ली के लाचार लोग। पहले देशद्रोही इस्लामिक-नक्सली ताकतों के शाहीन बागी धरनों से और अब फर्जी किसानों के इन धरनों से उन्हें क्या परेशानी हो रही है, हम उनकी आवाज सरकार के सामने उठाना चाहते हैं, सरकार को उनके बारे में बताना चाहते हैं, उसे जगाना चाहते हैं। दिल्ली की जनता पूछ रही है कि केंद्र की देशभक्त सरकार के राज में दिल्ली बार-बार देशद्रोही ताकतों के हवाले क्यों कर दी जाती है, क्यों हमारी देशभक्त सरकार के खुफिया विभाग हमेशा असफल रहते हैं या उनकी सूचनाओं पर समय से अमल नहीं किया जाता या उन्हें जानबूझ कर दरकिनार कर दिया जाता है?
दिल्ली वाले पूछ रहे हैं - ऐसा कब तक चलेगा? देशद्रोही ताकतें दिल्ली को कब तक ऐसे ही बंधक बनाती रहेंगी और केंद्र की देशभक्त सरकार उनके सामने हाथ जोड़े खड़ी रहेगी? दिल्ली वालों को सीधा सा कानून मालूम है कि सड़क पर कब्जा अवैध है और अगर कोई ऐसा करता है तो कब्जे को तुरंत गिरा दिया जाता है और ऐसा करने वाले के खिलाफ कार्रवाई होती है। लेकिन ऐसा क्यों कि देशद्रोही ताकतें दिल्ली की महत्वपूर्ण सड़कों और महामार्गों पर कब्जा कर लेती है लेकिन न तो देशभक्त सरकार के गृहमंत्री के कान पर जूं रेंगती है और न ही दिल्ली पुलिस पर? आज तक देशभक्त सरकार ने क्यों दिल्ली पुलिस के उन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जिनकी नाक के तले ऐसे अवैध धरने लगभग स्थायी ढांचों में बदल दिए गए?
दिल्ली वाले पूछ रहे हैं कि देशभक्त सरकार को चंद देशद्रोही लोगों के सामने ढाई करोड़ दिल्ली वालों की परेशानी और तकलीफें क्यों नहीं समझ आतीं? एक ही दिन में हमारे विदेश मंत्री जयशंकर और थलसेना प्रमुख नरवणे चीन और पाकिस्तान से दोतरफा हमले की आशंका जताते हैं, लेकिन क्यों देशभक्त सरकार के गृहमंत्री को दिल्ली को पंगु बनाने वाले और घेरने वाले देशद्रोही धरनों की चिंता नहीं होती?
आज दिल्ली वाले परेशान हैं। धरनों के कारण रोजगार पर असर पड़ रहा है, उद्योग धंधे चैपट हो रहे हैं, सर्दियों में सब्जी हमेशा सस्ती हो जाती थी, लेकिन इस वर्ष महंगी हो रही है, आवाजाही के धक्के और कैब चालकों की मनमानी वसूली अलग। वो हैरान हैं कि जिस देशभक्त सरकार को बनाने के लिए उन्होंने दिल्ली की सातों संसदीय सीटें सौंप दी, वो उनके प्रति इतनी उदासीन क्यों है?
पिछले वर्ष जामिया से शुरू हुए दंगे, पूर्वोत्तर दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों में आकर खत्म हुए। देशद्रोही शाहीनबागी इस्लामिक आग अब भी दिल्ली की गलियों में धधक रही है, पता नहीं देशभक्त सरकार को इसकी खबर है कि नहीं, लेकिन 50 से अधिक लोगों की बलि लेने वाला ये षडयंत्र अभी समाप्त भी नहीं हुआ था कि दिल्ली की सीमाओं पर देशद्रोही आग सुलगने लगी, ये चल क्या रहा है, सरकार सो क्यों रही है? ऐसी ताकतों को अवैध धरनों को मूक सहमति देकर आखिर देशभक्त सरकार और इसके मुखिया क्या हासिल करना चाहते हैं? ये सिलसिला कब तक चलेगा?
कब तक दिल्ली वाले देशभक्त सरकार के हाथों लाचार किए जाते रहेंगे और अवैध धरनों को हटवाने के लिए उच्चतम न्यायालय के चक्कर काटेंगे? अब दिल्ली वाले पूछ रहे हैं और सही पूछ रहे हैं - क्या दिल्ली की सल्तनत अब सुप्रीम कोर्ट चलाएगा और देशभक्त सरकार लुंजपुंज हो दिल्ली वालों को लाचारी और बेबसी की आग में धकेलती रहेगी?
अब दिल्ली वाले पूछ रहे हैं और सही पूछ रहे हैं कि देशभक्त सरकार और इसके मुखिया कब साबित करेंगे कि उनकी पास भी रीढ़ है? दिल्ली वालों की कीमत पर कब तक ये ‘उदारवादी-लोकतांत्रिक’ खेल चलेगा? कब देशभक्त सरकार वाजिब धरना-प्रदर्शनों और देशद्रोही ताकतों के षडयंत्रों के बीच फर्क करना सीखेगी? कब देशभक्त सरकार ऐसी ताकतों को निर्ममता से कुचलना सीखेगी? कब दिल्ली वाले चैन की सांस लेंगे? अन्यथा वो कब तक देशभक्त सरकार को वोट देने के लिए अपने कर्मों को कोसते रहेंगे?
रामहित नंदन, वरिष्ठ पत्रकार (ये लेखक के निजी विचार हैं)